प्रेमचंद की कहानियों में आदर्श और यथार्थ का अद्भुत संगम है। उनके उपन्यास गरीबों और शहरी
मध्यम वर्ग की समस्याओं का वर्णन करते हैं। भ्रष्टाचार, बाल विधवा, वेश्यावृत्ति, सामंती
व्यवस्था, गरीबी, उपनिवेशवाद के लिए और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित विषयों के
बारे में जागरूकता लाने के लिए उन्होंने साहित्य का सहारा लिया। उन्होंने मुख्यतः ग्रामीण
एवं नागरिक सामाजिक जीवन को कहानियों का विषय बनाया है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी
प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में
साहित्य की सृष्टि की। उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे
'उपन्यास सम्राट' की उपाधि से सम्मानित हुए। भारतीय कथा साहित्य की जातीय परंपरा से
प्रेमचंद की कहानियों का बहुत घनिष्ट संबंध है। समाज के दलित वर्गों, आर्थिक और सामाजिक
यंत्रणा के शिकार मनुष्यों के अधिकारों के लिए जूझती मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ हमारे
साहित्य की सबलतम निधि हैं। उनके मरणोपरांत उनकी कहानियों का संकलन 'मानसरोवर' नाम
से 8 खंडों में प्रकाशित हुईं। मानसरोवर 1 से 8 भागों में उपलब्ध है, जो प्रेमचंद की सम्पूर्ण
कहानियों का विशाल संग्रह है।